Tuesday, December 1, 2009

कोई तो मिले ऐसी.


कोई तो मिले ऐसी
जो सपना न हो, पर हो सपनो से भी हसीं।
जिसे देखूं तो ऐसा लगे,
मनो दिल में बज उठे प्रेम की बंसी।
कोई तो मिले ऐसी॥

होटों पे लिए फूलों के रंग,
गालों पे सूरज की लालिमा,
जिसके चेहरे की चाँदनी को देख
चाँद भी रह जाए दांग,
जिसकी न हो कोई भी उपमा।
हो वह हसीं में सबसे हसीं,
कोई तो मिले ऐसी॥

क्या बताऊँ मैं, कि हो वह कैसी,
पर हो इतना जरूर यकीन ;
उसकी एक मुस्कान पर,
न्योछावर हो दुनिया की सारी खुसी ।
कोई तो मिले ऐसी ॥

न हो वह कोई कोहिनूर,
या किसी जन्नत कि हूर ,
चाहे न हो वह सबसे मशहूर ;
पर हो वह इश्वर का सबसे नायात आविष्कार।
जिससे पहली ही नज़र में उसकी सुन्दरता से नही,
मुझे हो जाए उससे ही प्यार।
और क्या बयां करूँ कि हो वह कैसी ?
कोई तो मिले ऐसी॥

कोई तो मिले ऐसी,
जिसकी छवि है मेरे मन में बसी।
हो वह सभी कलाकारों के ख्यालों से परे।
जिसकी तस्वीर न बना पाये कोई,
न कोई उसपे कवीता लिख सके।
जिसकी छवि को कोई अपने जिस्मो जहन में उतार सके।
मुझे तो एक साथी चाहिए वैसी,
कोई तो मिले ऐसी॥

शायर की शायरी नही,
किसी की गजल नही,
कवि की कल्पना नही,
कलाकार की कला नही,
उसकी तो हर एक बात हो अलग ही;
मुझे तो चाहिए बस वही;
कोई तो मिले ऐसी,
कोई तो मिले ऐसी॥
कोई तो मिले ऐसी...
-- विकास कुमार सिंह