मन आज फिर मोर हो रहा है, आसमान जो घनघोर हो रहा है; मानो बचपन फिर से लौट आया हो, बाहर मुझ जैसे नन्हे-नन्हे बूंदों का शोर हो रहा है; लगता है बहुत दिनों बाद फिर से भोर हो रहा है, मन आज फिर मोर हो रहा है...
मदहोश करने वाली ये सोंधी खुशबू...मन को अब कैसे सम्हालूं?? ये तो कहीं और ही खो रहा है...मन आज फिर मोर हो रहा है...मन आज फिर मोर हो रहा है..
मदहोश करने वाली ये सोंधी खुशबू...मन को अब कैसे सम्हालूं?? ये तो कहीं और ही खो रहा है...मन आज फिर मोर हो रहा है...मन आज फिर मोर हो रहा है..